Saturday, October 27, 2012

धर्म के सच्चे प्रयोग की कथा

दशहरा धर्म के  सच्चे प्रयोग की कथा कहता है। इसी दिन भगवान श्रीराम ने माता सीता के रक्षार्थ अधर्मी रावण को राक्षस मेघनाद और कुंभकर्ण जैसे निशाचरों के साथ काल का ग्रास बनाने का महासंकल्प लिया था। मन में बसे इसी अन्यायी रावण को हमेशा के लिए उखाड़ फेंकने और माता सीता के साथ रघुवंशी राम और उनकी 'रामायण' को ह्वदय में प्रतिष्ठित करने ही हर साल दशहरा आता है।

दशहरा आने-जाने वाला कालखंड मात्र नहीं है, बल्कि यह तो हमारे जीवन और साहित्य में पूरी तरह से रचा-बसा जीवित प्रतिमान है। विजय दशमी, दशहरा, शमी पूजनोत्सव-नाम तीन पर त्योहार एक। जरा रूककर सोचिए कि इतिहास के किस मोड़ पर खडे होकर हम धर्म के साक्षात मूर्तिमान विग्रह के रूप में प्रतिष्ठित भगवान श्रीराम के विशाल 'कोदंड' नामक धनुष की प्रत्यंचा की घनघोर टंकार सुन रहे हैं!

शाश्वत मूल्यों की संस्थापना और नारी के अस्तित्व की रक्षा के लिए उठे उस भारी कोलाहल को क्या हम सुन पा रहे हैं, जो कभी समुद्र के उस पार धर्म की रक्षा के लिए नरोत्तम राम के साथ हनुमान आदि वानरों ने किया था? जहां मर्यादा व धर्म का सामना सीना तानकर खड़े अधर्म और अन्याय था।

 हकीकत में श्रीराम कहीं बाहर नहीं बल्कि हमारे भीतर बैठे वह प्राणतžव हैं, जिनके बिना सृष्टि और हमारी सांस का एक पल चलना भी मुश्किल है। श्रीराम मानवता के सर्वश्रेष्ठ प्रतिमान हैं। दशहरे में सामाजिक नैतिकता के नाम पर लादी हुई अनैतिकता नहीं बल्कि 'नारी' के सम्मान में उठे रघुवंश के धनुष से निकले तीखे बाणों की अमोघ सरसराहट है, जो अधर्म को नष्ट कर धर्म की प्रतिष्ठा की गुंजार कर रहे हैं।

सबसे पुराना त्योहार
दशहरा कदाचित हमारे सबसे पुराने त्योहारों में से एक है।  यह एकदम वैसे ही है जैसे हमारी अनादि प्रकृति। सच बात तो यह है कि जब दूसरा हारे, तब भी हमारी ही पराजय होती है। श्रीराम ने भी जब राक्षस रावण की नाभि पर अपना अंतिम प्राणघातक अग्निबाण चलाया तो उनका ह्वदय भी विषाद से भर उठा। उनके मन से यही बात निकली कि काश, संसार को रूलाने वाले इस राक्षस रावण ने ऎसा कुछ न किया होता।

विजय दशमी है अनुपम
ज्योतिष शास्त्र की मान्यता के अनुसार विजय दशमी प्रत्येक वर्ष की तीन अत्यंत शुभ तिथियों में एक है। मध्य भारत से लेकर दक्षिण भारत में तो आज तक बच्चों का अक्षरारंभ (विद्यारंभ) विजय दशमी के दिन ही करते हैं। पूरे देश में कोई भी नया कार्य आरंभ करने के लिए विजय दशमी शुभ मानी गई है।

अपराजिता को पूजने का दिन
'निर्णयसिंधु' नामक ग्रंथ के अनुसार प्राचीन काल से आज तक अपराजिता पूजन, शमी पूजन (खेजड़ी का पूजन), सीमोल्लंघन (अपने गांव या नगर की सीमा छोड़कर बाहर जाने का दिन), बाहर से वापस घर लौटने का दिन, नए वस्त्र व आभूषण पहनने का दिन तथा वीरता की गाथा कहते शस्त्र-अस्त्रों को पूजने का दिन है।

नारी रक्षा का संकल्प
विजय दशमी को ही भगवान श्रीराम ने माता सीता के शील के रूप में समस्त नारी जाति की मर्यादा को भंग करने पापी पुरूषों को नष्ट करने की शपथ ली थी। इसी कारण पूरी 'रामायण' लिखने के बाद महर्षि वाल्मीकि ने यही उद्घोषणा की थी कि 'यह संपूर्ण रामायण श्रीराम नहीं बल्कि माता सीता का ही चरित्र गायन है।' नारी रक्षा के इस सनातन त्योहार पर सारी सृष्टि मानो झूमकर जननी-माता को प्रणाम करती है।

No comments:

Post a Comment