Monday, August 6, 2012

ऋग्वेद में भी है राखी का जिक्र

हमारी पुरातन संस्कृति में रक्षाबंधन ऎसा त्योहार है, जिसकी महिमा विश्व के सबसे पुराने ग्रंथ ऋग्वेद से लेकर पुराणों तक में भरी पड़ी है। प्राचीन काल से लेकर आज तक रक्षाबंधन हमारी संस्कृति और लोक जीवन में भिन्न-भिन्न रूप से आता है। मन को एकाग्र करके शास्त्राभ्यास प्रारंभ करने का दिन रक्षाबंधन का दिन ही है। संस्कृत शास्त्रों के स्वाध्याय की परंपरा में राखी अर्थात श्रावणी पूर्णिमा ही गुरूकुलों में वेद पाठ प्रारंभ करने का दिन रहा है। इसी कारण आज तक ऋषि परंपरा के अनुयायी पुरोहित रक्षाबंधन के दिन ही पवित्र तीर्थो में "श्रावणी" की पूजा कर यज्ञोपवीत धारण करते हैं और अपने यजमानों की रक्षा के लिए उनका स्वस्तिवाचन कर उन्हें रक्षासूत्र बांधते हैं। कहते हंै कि रक्षासूत्र में सूर्य, चंद्र और अग्नि का निवास है। आज भी रक्षाबंधन के दिन हर व्यक्ति की रक्षा का बंधन उसके हाथ पर बंधा होता है, अब उस रक्षा सूत्र को चाहे पुरोहित बांधे या प्यारी बहिन।

रक्षासूत्र तरह-तरह के 
विप्र रक्षासूत्र : राखी के दिन किसी तीर्थ या जलाशय में जाकर वैदिक अनुष्ठान "श्रावणी" करने के बाद सिद्ध रक्षासूत्र को विद्वान् पुरोहित ब्राह्मण स्वस्तिवाचन करते हुए अपने यजमान के दाएं हाथ में बांधते हैं। शास्त्रों में यह सर्वाधिक महžव का रक्षासूत्र है। 

गुरू रक्षासूत्र : अनेक प्रकार की तप-साधना से संपन्न वैराग्यशाली गुरू अपने शिष्य के कल्याण के लिए मंत्रोच्चारण के साथ अपने शिष्य को जो रक्षासूत्र बांधते हैं, उसे गुरू रक्षासूत्र कहते हैं। 

माता-पितृ-रक्षासूत्र : अपनी संतान की चहुं ओर से रक्षा करने के लिए माता व पिता को भी उनके रक्षासूत्र बांधने का विधान शास्त्रों ने किया है। संस्कृत के अनेक ग्रंथों में इसे "करंडक" कहा गया है। 

भातृ-रक्षासूत्र : अपने से छोटे या बडे भाई की समस्त विघ्नों से रक्षा करने के लिएभाई को भी अपने भाई के राखी बांधनी चाहिए। देवताओं ने इसी तरह परस्पर एक-दूसरे को राखी बांधी थी और विजय प्राप्त की थी।

स्वसृ-रक्षासूत्र : पुरोहित या किसी वेदपाठी ब्राह्मण द्वारा रक्षासूत्र बांधने के बाद शास्त्रों में सबसे श्रेष्ठ विधान यही है कि बहिन पूरी श्रद्धा के साथ अपने भाई की दायीं कलाई पर सुंदर रक्षासूत्र बांधे। भविष्यपुराण में लिखा है कि बहिन के द्वारा बांधा हुआ रक्षासूत्र भाई की अनेक कष्टों से रक्षा करता है तथा उसे दीर्घायु तथा धन-धान्य भी प्रदान करता है। 
वृक्ष रक्षासूत्र : पुराणों में यह स्पष्ट उल्लेख है कि जिस कन्या के कोई भाई नहीं हो उसे वट, पीपल या गूलर के वृक्ष के ही रक्षासूत्र बांधना चाहिए। उस वृक्ष के ही फलदार तथा लंबे समय तक जीने की कामना इसलिए करनी चाहिए क्योंकि वह वृक्ष ही उस कन्या का भाई होता है। गौ रक्षासूत्र : अपने भाई की लंबी आयु व आरोग्यता की प्राप्ति के लिए बहिन को गौ माता के रक्षासूत्र बांधने का विधान भी प्राचीन काल से लेकर आज तक है। अगस्त्य संहिता में स्पष्ट लिखा है कि गौ माता के राखी बांधने से भाई के रोग-शोक-संकट दूर हो जाते हैं।

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