आज पहली बार पूरे संसार में विश्व योग दिवस मनाया जाना एक सुखद अहसास तो है ही, साथ में यह भारतीय परंपरा के प्रति पूरी दुनिया के नतमस्तक हो जाने का गौरवशाली संदेश भी है। वह शाश्वत प्रक्रिया जो हमें आरोग्य और अच्छी बुद्धि देती है और अनेक शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों से बचाती है, योग कही जाती है। सनातन परंपरा का सबसे बड़ा वरदान योग सारे संप्रदायों और मत-मतांतरों से दूर ऐसी वैज्ञानिक पद्धति है जो परम तत्त्व का ज्ञान स्वयं के माध्यम से करवाने का माद्दा रखती है। योग वह एकमात्र साधन है जो व्यक्ति को अंतिम ध्येय अर्थात् मोक्ष तक पहुंचा सकता है। आज योग का सीधा संबंध भले शरीर से दिखलाई पड़ता हो किंतु इसका असर तन से कहीं अधिक मन पर होता है। यही कारण है कि योग किसी धर्म की रीति या आचरण मात्र नहीं बल्कि ऋषियों द्वारा अनुभूत उस ज्ञान-विज्ञान का तात्विक परिणाम है, जिसे उन्होंने अपने समाधि-काल में देखा और सारी मानव जाति के कल्याण के लिए शास्त्रों में विवेचित किया। योग के संबंध में फैली हुई अनेक प्रकार की भ्रांतियों के निवारण हेतु यह आवश्यक है कि इसके वास्तविक स्वरूप को समझा जाए। मोटे तौर पर योग स्थूल से सूक्ष्म की ओर अर्थात् बाहर के संसार से भीतर की दुनिया में ले जाने वाला शाश्वत रास्ता दिखाता है।
अब जरा आप ही बताइए कि मन की शांति भला किसे नहीं चाहिए? कौन तनाव से मुक्त होकर चैन से अपना जीवन नहीं जीना चाहता? अब आप कहेंगे कि हर कोई यही तो चाहता है कि मैं तनावमुक्त होकर चैन से जीऊं । ठीक है, फिर जो कोई भी व्यक्ति अपने मन का तनाव कम करना चाहेगा उसे सबसे पहले एकाग्र होना पड़ेगा। किसी अनंत में अपना मन और ध्यान केंद्रित करना पड़ेगा। ध्यान के जिस केंद्र बिंदु पर वह स्वयं को स्थिर करेगा या लगातार आगे बढ़ेगा, उस अविनाशी तत्त्व का वह कोई नाम खोजेगा। (वेदों ने जब उसका नाम खोजा, तो उसे ‘ú’ कहा। यह ‘ú’ उस परमात्मा का वाचक है।) जब यही प्रक्रिया धीरे-धीरे निरंतर चलेगी तो वह ‘योगी’ कहलाने लगेगा क्योंकि वह जिस माध्यम से अपने मन को स्थिर कर रहा है, उस माध्यम का नाम ‘योग’ है। योग करते रहने से वह योगी कहलाएगा। हकीकत में योग हमें इतना मानसिक अभ्युदय देने की क्षमता रखता है, जिसका कोई सानी नहीं है। यह योग का ही चमत्कार है कि हमारी परंपरा श्रीकृष्ण को ‘योगीश्वर’ ही कहती है।
योग शास्त्र के आचार्य-
योग शास्त्र के आदि प्रवर्तक आचार्य हिरण्यगर्भ हैं। इनके लिखे सूत्रों (जो अब लुप्त है) के आधार पर ही महर्षि पतञ्जलि ने योग सूत्रों का निर्माण किया। पतंजलि के योग दर्शन में चार पाद (अध्याय) हैं, जिनमें 195 सूत्र हैं। ये चार पाद समाधि पाद, साधन पाद, विभूति पाद और कैवल्य पाद हैं। पतंजलि के अलावा योग के महान आचार्यों में वाचस्पति मिश्र, विज्ञानभिक्षु और गणेश भट्ट आदि प्रमुख हैं।
क्या है योग-
जैसे कोई किसान बीज बोने से पहले भूमि को उपजाऊ बनाता है ठीक वैसे ही योगी को योग करने से पहले अपने मन को उसके अनुरूप ढालना पड़ता है। योग कहते किसे हैं, ऐसी जिज्ञासा होने पर पतंजलि का सूत्र हमें बताता है-योगश्चित्तवृत्तिनिरोध:। अर्थात चित्त की वृत्तियों को रोकना योग है। निर्मल सत्वमय मन की उन इच्छाओं पर काबू पाना योग है जो उसे संसार से जोड़े रखना चाहती है। पहले किसी चीज के लिए हमारे मन में इच्छा पैदा होती है। इच्छा के होने पर हम उसे पाने के लिए लालायित हो जाते हैं। यदि वह पदार्थ हमें मिल जाए तो हम सुखी हो जाते हैं और यदि न मिले तो उसके कारण अवसाद या तनाव की स्थिति में पहुंंच जाते है। ऐसे में योग हमें रास्ता दिखता है अपने मन पर काबू रखने का ताकि हम मन से किसी वस्तु चाहे ही नहीं। इस मानसिक दशा में योग जो समाधान करता है, वह अनूठा है। मन की वृत्तियों को रोकने के लिए योग ने दो साधन बताए, अभ्यास और वैराग्य। उत्साहपूर्वक मन को अच्छी जगह लगाना ‘अभ्यास’ है। वहीं तृष्णा आदि मन के विकारों का त्यागकर संसार से निरंतर मन को हटाना ‘वैराग्य’ है। यदि ऐसा हुआ तो फिर हमें न सुख होगा और न ही दुख। मन के भीतर होगा सिर्फ आनंद ही आनंद। यह आनंद योग के आठ अंगों से मिलेगा। योग के आठ अंग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि हैं।
योग भगाए रोग-
योग को मात्र व्यायाम मानकर आजकल जितने भी आयोजन हो रहे हैं, हकीकत में वे योग को मन से नहीं मात्र तन से जोड़ रहे हैं। योग करने वाले और करवाने वाले दोनों को ही योग के मानसिक सबंध कोई चिंता नजर नहीं आ रही। योग के नाम से बड़े-बड़े औद्योगिक घराने खड़े हुए है। यह कम दुखद नहीं कि वे योग से भोग बढ़ाने में ही पूरा ध्यान लगाए हुए हैं। उनके योग का विज्ञापन इसी पर टिका है कि योग करो और फिर संसार को भोगो। जबकि योग तो इसके ठीक विपरीत मन की इच्छाओं को मारने का काम करता है। ईश्वर में परम प्रीति को विकसित करने वाला योग मात्र व्यायाम नहीं बल्कि आसन पर बैठकर परमात्मा को स्मरण करने का वैज्ञानिक साधन है।
आईटी और साइंस समेत कई क्षेत्रों में काम करने वाले अनेक युवा योग करते हैं, लेकिन उन्हें भी योग में ध्यान और समाधि की ही खोज है। एक कंप्यूटर पेशेवर युवा सुनील शर्मा के अनुसार मात्र हाथ-पांवों को ऊपर-नीचे करना योग नहीं है बल्कि मन को एकाग्र करने का सुदीर्घ प्रयास ही योग है, जिसमें प्राणायाम सर्वाधिक सहायक है। ऐसे युवा दिन भर की अपनी भागदौड़ से थक-हारकर योग के माध्यम से अपने जीवन में आनंद को खोज रहे हैं।
शास्त्री कोसलेन्द्रदास
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